संविधान क्या है?
इस पोस्ट में हम जानेंगे Bhartiya Samvidhan क्या है ? और भारतीय संविधान कैसे बना तथा इसके महत्वपूर्ण जानकारी |
किसी देश का संविधान उस देश की राजनितिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है जिसके द्वारा जनता शासित होती है।
यह राज्य की विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो की स्थापना करता है, उनकी शक्तियों की व्याख्या करता है, उनके दायित्वों का सीमांकन करता है और उनके पारस्परिक तथा जनता के साथ समन्वय स्थापित करता है।
लोकतंत्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है। किसी देश के संविधान को इसकी ऐसी आधार-विधि भी कहा जा सकता है जो उसकी राजव्यवस्था के मूल सिद्धांत को विहित करती है, तथा उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों को प्रतिबिम्बित करती है।
वह जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है।
एक नजर Bhartiya Samvidhan पर
हमारा वर्तमान संविधान, वास्तव में भारत के लोगों द्वारा बनाया तथा स्वयं को समर्पित किया गया भारत का प्रथम संविधान था, जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किया गया था।
यह 26 जनवरी, 1950 को पूर्ण रूप से लागु हो गया। भारत के संविधान/Bhartiya Samvidhan में कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी।
वर्तमान में, कुल अनुसूचियाँ 8 से बढ़कर 12 हो गई है साथ ही कुल भाग 22 से बढ़कर 25, तथा कुल अनुसूचियाँ 395 से बढ़कर 448 हो गई है।
Bhartiya Samvidhan/भारतीय संविधान की प्रकृति
भारतीय संविधान की प्रकृति परिसंघात्मक (Federal) है या एकात्मक (Unitary), इसे लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है।
कुछ विद्वानों ने इसे संघात्मक माना है, जिनके अनुसार संविधान/Bhartiya Samvidhan में शक्तियों का केंद्र एवं राज्यों के बिच विभाजन है और दोनों सरकारे अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
कुछ अन्य विद्वानों ने इसे एकात्मक स्वीकार किया है जिनके अनुसार प्रायः सारी शक्तियाँ केंद्र सरकार में निहित है और प्रांतों को केंद्र सरकार के अधीन कार्य करने पड़ते है।
एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले (1994) में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का बहुमत था की भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan एक परिसंघात्मक संविधान है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शब्दों में “यधपि हमारे संविधान में ऐसे उपबंधों का समावेश है, जो केन्द्र को ऐसी शक्ति प्रदान कर देते है जिनमे प्रांतो की स्वतंत्रता समाप्त सी हो जाती है, फिर भी यह परिसंघात्मक संविधान है।
दुर्गादास बसु ने बहुत ही व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह माना है की संविधान न तो शुद्ध रूप से परिसंघीय है और न ही शुद्ध रूप से ऐकिक है, किन्तु यह दोनों का संयोजन है। यह एक नए प्रकार का संघ या मिश्रित राज्य है।
उच्चतम न्यायालय ने ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट और बोम्मई के मामले में स्पष्टरूप से कहा है की भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan परिसंघात्मक है।
राजमन्नार समिति प्रतिवेदन (1971) और सरकारिया आयोग (1983) ने भी भारतीय संविधान को परिसंघीय बताया है।
प्रमुख विशेषताएँ
भारतीय संविधान के अनेक ऐसी विशेषताएँ है जो, उसे विश्व के अन्य संविधानों से एक अलग पहचान देती है। इसकी ऐसी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार है।
लिखित एवं विशाल संविधान
भारतीय संविधान एक विशेष संविधान-सभा द्वारा निर्मित एवं लिखित संविधान है।
- इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान अमेरिकी संविधान के समतुल्य है।
- भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक दस्तावेज है। मूल संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी।
- वर्तमान में संविधान में 25 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।
- भारतीय संविधान के विशालता के कारण ही इसे कुछ विद्वानों ने “वकीलों का स्वर्ग” (Lawyer’s Paradise) कहा है।
संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan में उत्कृष्ट प्रस्तावना है जिसमें जनता की भावनाएँ और आकांक्षाएँ सूक्ष्म रूप में समाविष्ट हैं।
- संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने के लिए यह एक कुँजी है।
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प्रभुत्व सम्पन राज्य
प्रभत्व सम्पन राज्य उसे कहते है जो बाहरी नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आंतरिक एवं विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो। इस सम्बन्ध में भारत पूर्णतः स्वतंत्र है।
- भारत की सम्प्रभुता किसी विदेशी सत्ता में नहीं अपितु भारत की जनता में निहित है।
- यधपि भारत आज़ादी के बाद राष्ट्रमंडल और संयुक्त राष्ट्र संघ का एक सदस्य है ,लेकिन उसकी यह सदस्यता अपनी इच्छानुसार है।
लोकतंत्रात्मक गणराज्य
‘लोकतंत्रात्मक’ शब्द का अर्थ यह है कि भारत में प्रतिनिधिमूलक प्रजातंत्र की स्थापना की गई है अर्थात भारत का शासन भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही संचालित करेंगे।
- गणराज्य’ से आशय यह है कि राज्य के सभी नागरिकों को अपनी योग्यतानुसार सभी छोटे-बड़े पदों पर पहुँचने का अधिकार है। साथ ही,भारतीय राज्य का प्रधान (राष्ट्रपति) एक निर्वाचित व्यक्ति होगा ,ब्रिटेन की तरह अनुवांशिक नहीं।
संसदीय सरकार
संविधान में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जो वेस्टमिंस्टर (इंग्लैंड) पर आधारित है।
- इस प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों, जिसे मंत्रिपरिषद कहते हैं, में निहित होती है।मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
- यद्यपि संविधान के अनुसार, समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथों में निहित है, किन्तु वह उसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।
मूल अधिकार
भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रावधान किया गया है। लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में मूल अधिकारों का प्रावधान संविधान की एक मुख्य व्यवस्था है।
- इन अधिकारों को संविधान में समाविष्ट करने की प्रेरणा अमेरिकी संविधान से मिला है।
राज्य के निति – निदेशक तत्व
संविधान के भाग 4 में कुछ ऐसे निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करना राज्य का कर्तव्य है।
- निदेशक तत्वों के माध्यम से देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- इसकी प्रेरणा मुख्यतः आयरलैंड के संविधान से मिली है।
- ग्लेनविन ऑस्टिन ने निदेशक तत्व के सिद्धांत को ‘राज्य की आत्मा’ कहा है।
स्वतंत्र न्यायपालिका
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग और स्वतंत्र रखा गया है।
- न्यायापालिका की स्वतंत्रता के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति, वेतन, भत्ता तथा पद से हटाए जाने के सम्बन्ध में संविधान में स्पष्ट प्रावधान किए गए है, जिससे सरकार उन पर दबाव नहीं बना सकती।
कठोर एवं लचीला संविधान
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan एक साथ कठोर एवं लचीला दोनों ही है।
- यह कठोर इसलिए है क्योंकि इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन करना अत्यंत कठिन है और इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है।
- यह लचीला इसलिए है क्योंकि इसके अधिकतर प्रावधानो को संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।
एकल नागरिकता
संघात्मक संविधान/Bhartiya Samvidhan में साधारणतः दोहरी नागरिकता (एक संघ की और दूसरी राज्यों की) होती है, जैसा कि अमेरिकी व्यवस्था में है। किन्तु भारतीय संविधान केवल एक नागरिकता को मान्यता प्रदान करता है।
- भारत का प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक है, न कि किसी राज्य का जिसमे वह रहता है।
संविधान कि कुछ महत्वपूर्ण बातें
- हमारे संविधान/Bhartiya Samvidhan में कुछ ऐसे संशोधन हुए है जिससे मानो संविधान की तात्विक दृष्टि से पुनर्रचना हो गई है। इनमें विशेष उल्लेखनीय हैं – 7वें, 42वें, 73वें, संशोधन। अंतिम दो संशोधनों द्वारा भाग 9 और 9 (क) जोड़े गए है, जो पंचायत और नगरपालिका से सम्बंधित है। इस प्रकार एक तीसरे स्तर के शासन के बारें में उपबन्ध किया गया है जो किसी और संविधान में नहीं मिलता।
- संविधान में अनेक स्थानों पर कुछ आधारभूत सिद्धांत अधिकथित किए गए और संसद को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह विधमान उपबंधों के स्थान पर दूसरे उपबंध रख दें या विधान बनाकर उनकी अनुपूर्ति करें। इस तरह से सुविधानुसार आवश्यक परिवर्तन किए सकते हैं और संविधान में शंसोधन की आवश्यकता नहीं होगी।
- हमारे संविधान में कुछ आधारभूत मामलों में एकरूपता स्थापित की गई, जैसे एक ही न्यायपालिका है, सभी राज्यों में सिविल और दाण्डिक प्रक्रिया आधारिक रूप से एक ही है। आवश्यकता पड़ने पर अखिल भारतीय सेवाओं सृजन भी किया जा सकता है।
- परिसंघीय संविधान में संघ और राज्य के संविधान हो सकते है किन्तु हमारा संविधान अनूठा है। इसमें पंचायत और नगरपालिका संबन्धी प्रावधान और उनसे सम्बंधित शक्तियों का भी वर्णन किया गया है।
वयस्क मताधिकार
भारत में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जिसमें देश का प्रशासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। अतः संविधान प्रत्येक वयस्क नागरिक को मताधिकार प्रदान करता है।
- संविधान के प्रवर्तन के समय मतदान का अधिकार केवल 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेने वाले को था, लेकिन संविधान के 61वें संशोधन (1989) के द्वारा मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
केंद्रोन्मुख संविधान
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि संघात्मक होते हुए भी उसमें केन्द्रीकरण की सबल प्रकृति है।
- आपातकालीन परिस्थितियों में संविधान पूर्णतया एक एकात्मक संविधान का रूप धारण कर लेता है।
पंथनिरपेक्ष राज्य
पंथनिरपेक्ष राज्य का आधारभूत सिद्धांत यह होता है कि राज्य की ओर से धार्मिक मामलों में तटस्थता की नीति का पालन किया जाए।
- भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan में सभी नागरिकों को धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतन्त्रता दी गई है।
समाजवादी राज्य
समाजवादी राज्य की स्थापना संविधान का मुख्य उददेश्य है जिसका संकेत प्रस्तावना में वर्णित सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता दिलाने के संकल्प में मिलता है।
- ‘समाजवादी’ शब्द संविधान में 42वें संशोधन द्वारा 1976 ई. में जोड़ा गया।
- उल्लेखनीय है की भारतीय समाजवाद लोकतान्त्रिक विचारधारा पर आधारित समाजवाद है जिसका उददेश्य विभिन्न वर्गों में असमानता समाप्त करके आर्थिक एवं सामाजिक शोषण को समाप्त करना है।
मूल कर्त्तव्य
42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग (4-क) जोड़कर उसमें नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों को भी शामिल किया गया।
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan इस अर्थ में भी विशिष्ट है की इसमें अल्पसंखयक समुदाय के हितों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
- इसके लिए मूल अधिकारों की सूचि में धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार दिए गए हैं।
विधि का शासन
भारतीय संविधान विधि के शासन की स्थापना करता है। इसके तहत विधि के समक्ष सभी नागरिक समान हैं तथा राज्य के प्रत्येक अंग विधि द्वारा नियमित एवं नियन्त्रित हैं।
विभिन्न संविधानों के तत्वों का समावेश
भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan की विशिष्टता का एक अन्य कारण इसमें विभिन्न देशों के संविधानों के मुख्य तत्त्वों का समावेश है।
- उल्लेखनीय है कि विदेशी संविधानों के विभिन्न उपबन्धों को भारतीय वातावरण के अनुरूप संशोधित कर संविधान में शामिल किया गया
“कोई भी संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि उसे क्रियान्वित करने वाले बुरे व्यक्ति है तो, संविधान भी बुरा हो जायेगा।”
डॉ. अम्बेडकर
सारांश
इस पोस्ट के जरीय हमने जाना भारतीय संविधान कैसे बना तथा भारतीय संविधान/Bhartiya Samvidhan कि गुणवक्ता को वैसे हमारा भारतीय संविधान देश में सर्वोपरी है | वैसे आपके लिए एक सवाल है – भारतीय संविधान /Bhartiya Samvidhan का जनक किसे कहा जाता है ? कमेंट करके बताइए |